रविवार, 25 जुलाई 2010

फर्जी एनकाउन्टर और गुजरात सरकार

सीबीआई ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में बुरी तरह फंसे मोदी के करीबी मंत्री अमित शाह के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। उनपर कत्ल, अपहरण, सबूत मिटाने, साजिश जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। सवाल ये कि आखिर सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस है क्या? दरअसल ये केस किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। इसमें खाकी, खादी, माफिया और गुंडों का ऐसा गठजोड़ है जिसने मिलकर एक गहरी साजिश रची। सीबीआई इस साजिश की तह तक पहुंच चुकी है। उसके पास जो सबूत हैं उनसे कहानी कुछ इस तरह से हैः-




सोहराबुद्दीन को कैसे मारा
26 नवंबर 2005 को अहमदाबाद सर्किल और विशाला सर्किल के टोल प्वाइंट पर हुई सोहराबुद्दीन की हत्या। सुबह तड़के 4 बजे इस सड़क पर अचानक कई चेहरे प्रकट हुए। गुजरात एटीएस के चीफ डीजी वंजारा के साथ आए राजस्थान पुलिस के सुपरिटेंडेंट एम एन दिनेश। कांस्टेबल अजय परमार से कहा गया कि वो एटीएस दफ्तर के पीछे पड़ी एक हीरो होंडा मोटरसाइकिल लेकर आए। सोहराबुद्दीन शेख को भी वहां लाया गया। राजस्थान पुलिस का एक सब इंस्पेक्टर मोटरसाइकिल पर बैठा और थोड़ी दूर जाकर अचानक नीचे कूद गया। उसी वक्त सोहराबुद्दीन को भी चलती कार से नीचे धक्का देकर सड़क पर गिरा दिया गया। नतीजा दोनों को चोट लगी, और उसी के साथ चार पुलिस इंस्पेक्टरों ने अपने सर्विस रिवॉ़ल्वर से सोहराबुद्दीन पर आठ गोलियां दाग दीं। वंजारा ने कांस्टेबल परमार से सोहराबुद्दीन के निर्जीव शरीर को सिविल अस्पताल ले जाने को कहा।

सोहराबुद्दीन को क्यों मारा गया

आखिर एक आम गैंगस्टर से गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह की क्या दुश्मनी हो सकती है? ये सच छिपा है गुजरात और राजस्थान में मौजूद अरबों की मार्बल लॉबी में। सोहराबुद्दीन दरअसल, आईपीएस अभय चूड़ास्मा के इशारे पर इसी लॉबी से पैसे वसूल रहा था। इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा चूड़ास्मा डकार जाता था। कहा जा रहा है कि गुजरात और राजस्थान की मार्बल लॉबी ने सोहराबुद्दीन की वसूली से आजिज आकर गृह राज्य मंत्री अमित शाह से संपर्क साधा। ये लॉबी गुजरात और राजस्थान में राजनीतिक पार्टियों के लिए धनकुबेर की तरह काम करती है। आरोप है कि अमित शाह ने अभय चूड़ास्मा से सोहराबुद्दीन को रास्ते से हटाने को कहा। शायद शाह अंदर की कहानी नहीं जानते थे। उन्हें इस बात की भनक तक नहीं थी कि जिस गैंगस्टर से वो धनवान कारोबारियों को बचाने की कोशिश में हैं वो दरअसल खुद अभय चूड़ास्मा का ही पैदा किया हुआ राक्षस है।

कैसे फंसा सोहराबुद्दीन पुलिस के जाल में

किसी भी तरह राजस्थान में कहीं छिपे बैठे सोहराबुद्दीन को गुजरात लाना था। उसे गुजरात में किसी नए इल्जाम में फांसने की साजिश बुनी गई। अभय चूड़ास्मा ने सोहराबुद्दीन को लालच दिया। रमण पटेल नाम के एक कारोबारी से पैसे ऐंठने के बहाने उसे गुजरात बुलाया गया। सोहराबुद्दीन ने अपने दो प्यादों सिलवेस्टर और तुलसी प्रजापति को भेजा। दोनों ने पॉपुलर बिल्डर के मालिक रमण पटेल पर गोली चलाई। इधर गोली चली उधर सोहराबुद्दीन के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज हो गई। सोहराबुद्दीन हैरान रह गया, उसे शक हो गया कि हो न हो अभय चूडास्मा उसके साथ डबल क्रॉस कर रहा है। वो एक साल के लिए गायब हो गया। तब पुलिसवालों ने एक बार फिर लालच का फंदा फेंका। सोहराबुद्दीन का साथी तुलसी प्रजापति उसमें फंस गया, वो बिक गया। और वो सोहराबुद्दीन से दगा करने, उसका पता देने को तैयार हो गया।

22 नवंबर 2005 की रात - गुजरात एटीएस और राजस्थान पुलिस की टीम ने आंध्र प्रदेश एसआरटीसी की बस को सांगली के पास रोका। ये बस हैदराबाद से सांगली जा रही थी। सोहराबुद्दीन, कौसर बी और तुलसी प्रजापति इसी बस में थे। इन्हें पकड़कर गांधीनगर के बाहरी इलाके जमीयतपुरा के एक फार्म हाउस दिशा लाया गया। यहां दो दिन रखा गया और इन दो दिनों में सब कुछ बदल गया। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सोहराबुद्दीन को रास्ते से हटाने के बाद अभय चूड़ास्मा ने खुद कम से कम 12 कारोबारियों को फोन किया। धमकी दी कि या तो पैसे दे दो या फिर वो उन्हें सोहराबुद्दीन के कत्ल के इल्जाम में फंसा देगा। बताया जाता है कि चूड़ास्मा ने इस तरह करीब 15 करोड़ रुपए उगाहे और ये पैसा खुद जय पटेल और यश चूड़ास्मा नाम के लोगों ने जमा किया।


कैसे मारा गया तुलसी प्रजापति

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर का इकलौता चश्मदीद गवाह तुलसी प्रजापति सोहराबुद्दीन के साथ ही उठाया गया था लेकिन फिर उसे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर का पुलिस गवाह बनाकर छोड़ दिया गया। बाद में राजस्थान पुलिस ने उसे दूसरे मामले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उसी वक्त ये मामला मीडिया में आया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस सीआईडी के पास आया तो वंजारा और शाह घबरा गए। लगा कहीं प्रजापति ने मुंह खोल दिया तो सारा खेल बिगड़ जाएगा। सो रची गई एनकाउंटर की कहानी। इसके लिए जगह चुनी गई- बनासकांठा। बनासकांठा यानी वो जिला जो एटीएस के अफसर वंजारा के अंडर आता था। 27 दिसंबर 2006 को राजस्थान से गुजरात पेशी के लिए प्रजापति को लाया जा रहा था। रास्ते में ही गोलियां चलीं और उसे मार डाला गया। कहानी बनाई गई कि उसने अपने एक साथी के साथ मिलकर पुलिस पार्टी की आंखों में मिर्च पाउडर डाल दिया और गोलियां चलाईं, जवाबी गोलीबारी में वो मारा गया। लेकिन सीआईडी की जांच में पुलिस की ये कहानी झूठी साबित हुई।

कहां गई कौसर बी


सीआईडी की आईजी गीता जौहरी की रिपोर्ट में 26 नवंबर 2005 की उस सुबह का जिक्र है जिस दिन सोहराबुद्दीन को ले जाने के बाद फॉर्महाउस में कैद कौसर बी को भी वहां से हटा दिया गया। उसे अंतिम बार एक सफेद मारुति कार में सादी वर्दी वाले पुलिसवालों के साथ जाते देखा गया। लेकिन जौहरी की रिपोर्ट कौसर बी पर ज्यादातर वक्त खामोश रहती है। इसका राज खुलता है - सीबीआई को दिए पुलिस इंस्पेक्टर एन वी चौहान के बयान में। उसके बयान में एटीएस के चीफ डी जी वंजारा का जिक्र है, एक फोन का जिक्र है और ये शक है कि वो फोन खुद गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह का था। शाह चाहते थे कि कौसर बी को भी उसके पति की तरह ही ठिकाने लगा दिया जाए। ये बयान कुछ इस तरह था - मेरे सामने डीजी वंजारा आरहम फॉर्म में बैठे थे। उसी वक्त उनका फोन बजा। जिस तरह से वो फोन करने वाले से बातें कर रहे थे, मुझे पता चल गया कि ये खुद अमित शाह का फोन था। पहले तो वंजारा ने शाह को ये भरोसा दिलाने की कोशिश की कि कौसर बी को लेकर उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कौसर बी को वो या तो आंध्र पुलिस या फिर राजस्थान पुलिस के हवाले कर देंगे। लेकिन उसके बाद वंजारा की जैसे बोलती बंद हो गई, वो चुपचाप दूसरी ओर से कही जा रही बातें सुनते रहे। बात खत्म होने पर वो मेरी ओर मुड़े और बोले कि अमित शाह कह रहे हैं कि कौसर बी का जिंदा रहना बेहद खतरनाक है। उन्होंने यहां तक कहा कि अमित शाह चाहते हैं कि कौसर बी को ऐसे ठिकाने लगाया जाए कि उनकी लाश तक न मिल सके। उनका नाम गुमशुदा के तौर पर ही रह जाएगा।

सीआईडी ने भी ये दावा किया कि खुद एटीएस के अफसरों ने ही कौसर बी को मार कर उसका शव जला दिया। लेकिन ये कोई बताना नहीं चाहता कि आखिर कौसर बी को मारा कैसे गया। ये बात पक्की है कि कानून के रखवालों ने ही उस महिला को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि अगर वो उसे छोड़ते तो सोहराबुद्दीन के कत्ल का राज खुल जाता।

3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या किसी भी राज्य के गृह मंत्री की दुश्मनी गेंगस्टर और अन्य अपराधी से नहीं होनी चाहिए ?

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  2. सोहराबुद्दीन और उसके जैसे खून्कार गुंडों और आतंवादियों को जितनी जल्दी खत्म किया जाएगा उतनी ही जल्दी हमारे देश का कल्याण होगा

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  3. में आपके विचार से पूरी तरह सहमत हु के हमारे देश में गुंडे बदमाशो और आतंकवादियों को सीधे मार देना चाहए
    शंकर जी के अनुसार किसी भी गृह मंत्री की दुश्मनी गुंडों से बदमाशो से nahi होनी चाहिए जी हाँ बिलकुल नहीं होनी चाहिए ये ही हमारे देश को और जादा भरष्ट बनता है और महक जी की बात के जितनी जल्द हम गुंडों और आतंकवादियों को ख़तम करेंगे उतनी जल्दी हमारा देश तरक्की करेगा , का कहना बिलकुल उचित है
    जैसा की अपने फर्जी एन्कोउन्टर लेख पड़ा और अपने विचार दिए में आपका आभार वियक्त करता हु
    रही शंकर जी की बात तो शायद अपने पड़ा नही के सोहराबुद्दीन पहले अभय चुदास्स्मा जो की IPS है के लिए वसूली करता था जिसका जादातर माल IPS होने के नाते खुद डकार जाता था सोहराबुद्दीन को पैदा करने वाले और उसे बनाने वाले तो कुछ और लोग ही थे अगर हम सारे केस को धयान से देखे तो कई सवाल मन में आते है.

    १-एक छोटा मोटा बदमाश होने के बाद उसकी दुश्मनी गृह मंत्री से कैसे हो गयी
    2-उसे तब क्यों मरवाया गया जब उसने वसूली का माल बाटने से इनकार क्र दिया
    3- अपने फायेदे के लिए उसे मरने के बाद गुजरात सरकार ने उसे आतंकवादी मुडभेड बताया
    ४-क्या सोहराबुद्दीन को मरने के बाद मार्बल लोब्ब्य से अवेध वसूली बंद हो गयी
    ५- क्या karan था उसकी बेगुनाह पत्नी को मारकर उसकी लाश को जलने की पीछे
    ६-क्या हर शहर गाँव में इस तरेह के बदमाश नहीं होते तो क्यों नहीं सब को एक साथ मार दिया जाता
    अगर हम सारे केस की गहराई से जांच करे तो असली गुंडे तो वो है जिन्होंने सोहराबुद्दीन को बनाया तो क्यों नहीं उन्हें भी गोली मारी गयी

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kirpya apne vichar de