शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

फिर तनाव में स्वर्ग

श्रीनगर में बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारेबाजी की और सुरक्षाबलों पर पथराव किया। लेकिन सुरक्षाबलों ने संयम दिखाते हुए हालात को काबू में ले लिया। जगह-जगह सुरक्षाबलों की टुकड़ियां तैनात कर दी गई हैं। आला अधिकारी भी मौके का दौरा कर रहे हैं ताकि मामला आगे न बढ़े
कश्मीर बंद के दौरान श्रीनगर में कुछ लोग रास्तों पर उतरकर प्रदर्शन करने लगे। लोगों ने आग जला कर नारेबाजी शुरू कर दी। मौके पर पुलिस और सीआरपीएफ पहुंची लेकिन उन्होंने सख्ती नहीं दिखाई और संयम से काम लिया।
लोगों ने पथराव शुरू कर दिया तो गाड़ियों के जरिए उन्हें खदेड़ा गया। पुलिस के मुड़ते ही प्रदर्शनकारी फिर से जमा हो गए। इलाके में तनाव बना हुआ है। लेकिन हालात काबू में हैं।
ताज़ा जानकारी के अनुसार बंद क दौरान हुई पुलिस फयर्रिंग में एक व्यक्ति क घायल होने की खबर है जिसकी हालत गंभीर बताई जा रही है


रविवार, 25 जुलाई 2010

फर्जी एनकाउन्टर और गुजरात सरकार

सीबीआई ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में बुरी तरह फंसे मोदी के करीबी मंत्री अमित शाह के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। उनपर कत्ल, अपहरण, सबूत मिटाने, साजिश जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। सवाल ये कि आखिर सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस है क्या? दरअसल ये केस किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। इसमें खाकी, खादी, माफिया और गुंडों का ऐसा गठजोड़ है जिसने मिलकर एक गहरी साजिश रची। सीबीआई इस साजिश की तह तक पहुंच चुकी है। उसके पास जो सबूत हैं उनसे कहानी कुछ इस तरह से हैः-




सोहराबुद्दीन को कैसे मारा
26 नवंबर 2005 को अहमदाबाद सर्किल और विशाला सर्किल के टोल प्वाइंट पर हुई सोहराबुद्दीन की हत्या। सुबह तड़के 4 बजे इस सड़क पर अचानक कई चेहरे प्रकट हुए। गुजरात एटीएस के चीफ डीजी वंजारा के साथ आए राजस्थान पुलिस के सुपरिटेंडेंट एम एन दिनेश। कांस्टेबल अजय परमार से कहा गया कि वो एटीएस दफ्तर के पीछे पड़ी एक हीरो होंडा मोटरसाइकिल लेकर आए। सोहराबुद्दीन शेख को भी वहां लाया गया। राजस्थान पुलिस का एक सब इंस्पेक्टर मोटरसाइकिल पर बैठा और थोड़ी दूर जाकर अचानक नीचे कूद गया। उसी वक्त सोहराबुद्दीन को भी चलती कार से नीचे धक्का देकर सड़क पर गिरा दिया गया। नतीजा दोनों को चोट लगी, और उसी के साथ चार पुलिस इंस्पेक्टरों ने अपने सर्विस रिवॉ़ल्वर से सोहराबुद्दीन पर आठ गोलियां दाग दीं। वंजारा ने कांस्टेबल परमार से सोहराबुद्दीन के निर्जीव शरीर को सिविल अस्पताल ले जाने को कहा।

सोहराबुद्दीन को क्यों मारा गया

आखिर एक आम गैंगस्टर से गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह की क्या दुश्मनी हो सकती है? ये सच छिपा है गुजरात और राजस्थान में मौजूद अरबों की मार्बल लॉबी में। सोहराबुद्दीन दरअसल, आईपीएस अभय चूड़ास्मा के इशारे पर इसी लॉबी से पैसे वसूल रहा था। इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा चूड़ास्मा डकार जाता था। कहा जा रहा है कि गुजरात और राजस्थान की मार्बल लॉबी ने सोहराबुद्दीन की वसूली से आजिज आकर गृह राज्य मंत्री अमित शाह से संपर्क साधा। ये लॉबी गुजरात और राजस्थान में राजनीतिक पार्टियों के लिए धनकुबेर की तरह काम करती है। आरोप है कि अमित शाह ने अभय चूड़ास्मा से सोहराबुद्दीन को रास्ते से हटाने को कहा। शायद शाह अंदर की कहानी नहीं जानते थे। उन्हें इस बात की भनक तक नहीं थी कि जिस गैंगस्टर से वो धनवान कारोबारियों को बचाने की कोशिश में हैं वो दरअसल खुद अभय चूड़ास्मा का ही पैदा किया हुआ राक्षस है।

कैसे फंसा सोहराबुद्दीन पुलिस के जाल में

किसी भी तरह राजस्थान में कहीं छिपे बैठे सोहराबुद्दीन को गुजरात लाना था। उसे गुजरात में किसी नए इल्जाम में फांसने की साजिश बुनी गई। अभय चूड़ास्मा ने सोहराबुद्दीन को लालच दिया। रमण पटेल नाम के एक कारोबारी से पैसे ऐंठने के बहाने उसे गुजरात बुलाया गया। सोहराबुद्दीन ने अपने दो प्यादों सिलवेस्टर और तुलसी प्रजापति को भेजा। दोनों ने पॉपुलर बिल्डर के मालिक रमण पटेल पर गोली चलाई। इधर गोली चली उधर सोहराबुद्दीन के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज हो गई। सोहराबुद्दीन हैरान रह गया, उसे शक हो गया कि हो न हो अभय चूडास्मा उसके साथ डबल क्रॉस कर रहा है। वो एक साल के लिए गायब हो गया। तब पुलिसवालों ने एक बार फिर लालच का फंदा फेंका। सोहराबुद्दीन का साथी तुलसी प्रजापति उसमें फंस गया, वो बिक गया। और वो सोहराबुद्दीन से दगा करने, उसका पता देने को तैयार हो गया।

22 नवंबर 2005 की रात - गुजरात एटीएस और राजस्थान पुलिस की टीम ने आंध्र प्रदेश एसआरटीसी की बस को सांगली के पास रोका। ये बस हैदराबाद से सांगली जा रही थी। सोहराबुद्दीन, कौसर बी और तुलसी प्रजापति इसी बस में थे। इन्हें पकड़कर गांधीनगर के बाहरी इलाके जमीयतपुरा के एक फार्म हाउस दिशा लाया गया। यहां दो दिन रखा गया और इन दो दिनों में सब कुछ बदल गया। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सोहराबुद्दीन को रास्ते से हटाने के बाद अभय चूड़ास्मा ने खुद कम से कम 12 कारोबारियों को फोन किया। धमकी दी कि या तो पैसे दे दो या फिर वो उन्हें सोहराबुद्दीन के कत्ल के इल्जाम में फंसा देगा। बताया जाता है कि चूड़ास्मा ने इस तरह करीब 15 करोड़ रुपए उगाहे और ये पैसा खुद जय पटेल और यश चूड़ास्मा नाम के लोगों ने जमा किया।


कैसे मारा गया तुलसी प्रजापति

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर का इकलौता चश्मदीद गवाह तुलसी प्रजापति सोहराबुद्दीन के साथ ही उठाया गया था लेकिन फिर उसे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर का पुलिस गवाह बनाकर छोड़ दिया गया। बाद में राजस्थान पुलिस ने उसे दूसरे मामले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उसी वक्त ये मामला मीडिया में आया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस सीआईडी के पास आया तो वंजारा और शाह घबरा गए। लगा कहीं प्रजापति ने मुंह खोल दिया तो सारा खेल बिगड़ जाएगा। सो रची गई एनकाउंटर की कहानी। इसके लिए जगह चुनी गई- बनासकांठा। बनासकांठा यानी वो जिला जो एटीएस के अफसर वंजारा के अंडर आता था। 27 दिसंबर 2006 को राजस्थान से गुजरात पेशी के लिए प्रजापति को लाया जा रहा था। रास्ते में ही गोलियां चलीं और उसे मार डाला गया। कहानी बनाई गई कि उसने अपने एक साथी के साथ मिलकर पुलिस पार्टी की आंखों में मिर्च पाउडर डाल दिया और गोलियां चलाईं, जवाबी गोलीबारी में वो मारा गया। लेकिन सीआईडी की जांच में पुलिस की ये कहानी झूठी साबित हुई।

कहां गई कौसर बी


सीआईडी की आईजी गीता जौहरी की रिपोर्ट में 26 नवंबर 2005 की उस सुबह का जिक्र है जिस दिन सोहराबुद्दीन को ले जाने के बाद फॉर्महाउस में कैद कौसर बी को भी वहां से हटा दिया गया। उसे अंतिम बार एक सफेद मारुति कार में सादी वर्दी वाले पुलिसवालों के साथ जाते देखा गया। लेकिन जौहरी की रिपोर्ट कौसर बी पर ज्यादातर वक्त खामोश रहती है। इसका राज खुलता है - सीबीआई को दिए पुलिस इंस्पेक्टर एन वी चौहान के बयान में। उसके बयान में एटीएस के चीफ डी जी वंजारा का जिक्र है, एक फोन का जिक्र है और ये शक है कि वो फोन खुद गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह का था। शाह चाहते थे कि कौसर बी को भी उसके पति की तरह ही ठिकाने लगा दिया जाए। ये बयान कुछ इस तरह था - मेरे सामने डीजी वंजारा आरहम फॉर्म में बैठे थे। उसी वक्त उनका फोन बजा। जिस तरह से वो फोन करने वाले से बातें कर रहे थे, मुझे पता चल गया कि ये खुद अमित शाह का फोन था। पहले तो वंजारा ने शाह को ये भरोसा दिलाने की कोशिश की कि कौसर बी को लेकर उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कौसर बी को वो या तो आंध्र पुलिस या फिर राजस्थान पुलिस के हवाले कर देंगे। लेकिन उसके बाद वंजारा की जैसे बोलती बंद हो गई, वो चुपचाप दूसरी ओर से कही जा रही बातें सुनते रहे। बात खत्म होने पर वो मेरी ओर मुड़े और बोले कि अमित शाह कह रहे हैं कि कौसर बी का जिंदा रहना बेहद खतरनाक है। उन्होंने यहां तक कहा कि अमित शाह चाहते हैं कि कौसर बी को ऐसे ठिकाने लगाया जाए कि उनकी लाश तक न मिल सके। उनका नाम गुमशुदा के तौर पर ही रह जाएगा।

सीआईडी ने भी ये दावा किया कि खुद एटीएस के अफसरों ने ही कौसर बी को मार कर उसका शव जला दिया। लेकिन ये कोई बताना नहीं चाहता कि आखिर कौसर बी को मारा कैसे गया। ये बात पक्की है कि कानून के रखवालों ने ही उस महिला को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि अगर वो उसे छोड़ते तो सोहराबुद्दीन के कत्ल का राज खुल जाता।

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

उत्तराखंड में भूमि घोटाला पर प्रदेश सरकार की किरकिरी

उत्तराखंड  सरकार पर भूमि घोटाले का आरोप लगते हुए विपक्ष नेता हराक सिंह रावत ने ये कहते हुए सीबीआई जांच की मांग की जब ये भूमि ऋषिकेश के शंतिपर्सन्न शर्मा और उनके भाई ललितमोहन शर्मा की है फिर ये ज़मीन सितूरगिया को कैसे दे दी गयी कई तथ्यों को दरकिनार कर राज्य सरकार ने लोगों को गुमराह किया।सरकार ने उन लोगों को भी गुमराह किया जिन्होंने मामले की हकीकत जानने की कोशिश की।महिला कांग्रेस की प्रदेश महामंत्री पूनम उनियाल ने जब सूचना के अधिकार के जरिए लैंड यूज़ की जानकारी मांगी तो उन्हें गुमराह किया गया।उनके पत्र को हरित विकास प्राधिकरण को भेज दिया गया।

पूनम उनियाल का कहना है कि फैक्ट्री परिसर में 1200 हरे पेड़ थे उनमें से 800 पेड़ों को काट डाला गया।अब सिटूरगिया परिसर में खुदाई हो रही है और बगैर इजाजत के खनन किया जा रहा है।विभाग ने सिटूरगिया पर एक करोड़ 60 लाख की पेनाल्टी लगाई है।
कांग्रेस सरकार पर घोटालो का आरोप मड़ते  हुए बीजेपी सत्ता पर काबिज़ हुई थी और एक के बाद एक घोटालो में फसने के बाद राज्ये सरकार बेक फुट पर आ गयी है विपक्ष की पार्टियो कांगेरस और बहुजन समाजपार्टी ने आन्दोलन की धमकी देते हुए  कि राज्य  भर में निशंक सरकार के पुतले फूंके जिस से राज्य में सरकार दवाब में आ गयी है विपक्ष का कहना है की  किस तरह निशंक सरकार ने 50 एकड़ सरकारी जमीन को एक निजी कंपनी के हवाले कर दिया और इसके लिए सरकार ने एक ही दिन में सारी फाइल क्लियर कर दी। एक निजी न्यूज़ चेन्नल  के  इस खुलासे के बाद उत्तराखंड सरकार और बीजेपी दोनों ही बचाव की मुद्रा में हैं और मुख्यमंत्री निशंक इस पूरे घोटाले से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं

रविवार, 18 जुलाई 2010

भारत-पाक रिश्तो पर विशेष




नई दिल्‍ली. विदेश मंत्री एस.एम. कृष्‍णा पाकिस्‍तान गए तो थे विवाद सुलझाने की मंशा से, लेकिन यह यात्रा एक नया विवाद खड़ा कर गई। पाकिस्‍तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत के गृह सचिव जी.के. पिल्‍लै की तुलना लश्‍कर प्रमुख हाफिज सईद से कर दी। इस बात पर कृष्‍णा तो शांत रहे, लेकिन दिल्‍ली में भाजपा भड़क गई। कांग्रेस ने भी कुरैशी के बयान पर ऐतराज जताया है। गृह मंत्रालय ने भी कहा है कि कुरैशी को इस तरह की भाषा का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए था। मंत्रालय ने पूछा है कि क्‍या मेहमाननवाजी का यही तरीका होता है?

कृष्‍णा की पाकिस्‍तान यात्रा के दौरान कई मसलों पर दोनों देशों में मतभेद सामने आए। यह कटुता उस समय और बढ़ गई जब पाकिस्‍तान के विदेश मंत्री एस.एम.कुरैशी ने लश्‍कर प्रमुख हाफिज सईद और भारत के गृह सचिव जीके पिल्‍लई की तुलना कर दी। उन्‍होंने कह दिया कि आप हाफिज सईद के भारत विरोधी भाषणों की ओर ध्‍यान दिलाते हैं, मैं आपका ध्‍यान जी.के. पिल्‍लई के उस बयान की ओर दिलाता हूं जिसमें उन्‍होंने मुंबई हमले में आईएसआई की भूमिका की बात कही है। पिल्‍लई की यह टिप्‍पणी डेविड हे‍डली के बयान पर आधारित थी। कांग्रेस ने कुरैशी के इस बयान को गंभीर मानते हुए इसे बेहद निचले स्‍तर का बताया है।

उधर भाजपा ने कुरैशी के बयान पर भारतीय विदेश मंत्री की चुप्‍पी पर हैरानी जताई है। पार्टी प्रवक्‍ता रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि विदेश मंत्री लोकभावना के विपरीत पाकिस्‍तान की यात्रा पर गए थे।
हालांकि एसएम. कृष्‍णा ने भारत रवाना होने से पहले इस्‍लामाबाद में संवाददाताओं को कहा कि दोनों देशों की बातचीत सफल रही। इसके साथ ही उन्‍होंने कुरैशी के साथ मतभेद की खबरों से भी इनकार कर दिया। पिल्‍लै के बारे में उनके बयान पर भी उन्‍होंने कोई टिप्‍पणी करने से मना कर दिया।

ऐसे में बातचीत का क्‍या फायदानई दिल्‍ली: भारत ने अपनी ओर से पहल कर पाकिस्‍तान के साथ बातचीत की कोशिश तो बड़ी की, लेकिन इसके कामयाब होने के कोई संकेत पाकिस्‍तान की ओर से नहीं मिल रहे हैं।गुरुवार को इस्‍लामाबाद में जब भारतीय और पाकिस्‍तानी विदेश मंत्री कई घंटे चली बातचीत के बाद मीडिया को संबोधित कर रहे थे, तभी सीमा पार से पाकिस्‍तानी सैनिक गोलियां दाग रहे थे। जम्‍मू से करीब 30 किलोमीटर दूर, रणवीरसिंहपुरा में उन्‍होंने पांच जगहों पर सीमा सुरक्षा बल को निशाना बना कर गोलीबारी कर संघर्षविराम का उल्‍लंघन किया। पिछले दो सप्‍ताह के दौरान ही पाकिस्‍तान की ओर से संघर्षविराम उल्‍लंघन का यह छठा मामला है।कश्‍मीर में पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंकवाद लगातार जारी है। पिछले चार दिनों से लगातार राज्‍य में एक मुठभेड़ चल रही है। इसमें एक मेजर शहीद हो गए हैं और एक जख्‍मी भी हुए हैं।सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशें आम हैं।मुंबई हमले के गुनहगारों से जुड़े तमाम सुबूत मुहैया कराने के बावजूद पाकिस्‍तान उन पर कार्रवाई नहीं कर रहा है। हाफिज सईद को पाकिस्‍तान में भारत के खिलाफ अभियान चलाने की खुली आजादी है। मसले और स्‍टैंड भारतीय विदेश मंत्री की पाकिस्‍तान यात्रा में दोनों देशों के बीच चल रहे किसी भी मुद्दे पर किसी समाधान के कोई संकेत नहीं मिले। उल्‍टे हर मुद्दे पर पहले की ही तरह दोनों पक्षों की राय जुदा नजर आई। कश्‍मीर: भारत का कहना है कि कश्‍मीर में हिंसा से निपटना उसका अंदरूनी मसला है और वह अपने तरीके से निपटने के लिए स्‍वतंत्र है। पाकिस्‍तान का कहना है कि इससे उस पर भी असर पड़ता है।मुंबई हमला: भारत का कहना है कि मुंबई हमले के गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए पाकिस्‍तान एक समयसीमा तय करे। पाकिस्‍तान का कहना है कि यह संभव नहीं है, क्‍योंकि उसके यहां न्‍यायपालिका स्‍वतंत्र है। न्‍यायपालिका को सरकार निर्देश नहीं दे सकती।बलूचिस्‍तान: पाकिस्‍तान के प्रांत बलूचिस्‍तान में हिंसा के लिए वह भारत पर आरोप मढ़ता रहा है। भारत का कहना है कि यह पाकिस्‍तान का केवल बयान भर है, तथ्‍य या साक्ष्‍य से इसका कोई लेना-देना नहीं है। पाकिस्‍तान लगातार कहता रहा है कि उसके पास पुख्‍ता सुबूत हैं, लेकिन उसने ये सुबूत कभी पेश नहीं किए।

हाफिज सईद: भारत का कहना है कि लश्‍कर-ए-तैयबा का संस्‍थापक हाफिज मुहम्‍मद सईद ही मुंबई हमले का मास्‍टरमाइंड है। सईद के भारत विरोधी, भड़काऊ बयानों और हरकतों पर लगाम कसे बिना पाकिस्‍तान से भारत के संबंध बेहतर नहीं हो सकते। पाकिस्‍तान ने कहा कि यही बात भारतीय गृह सचिव जीके पिल्‍लै पर लागू होती है, जिन्‍होंने कृष्‍णा की पाकिस्‍तान यात्रा से ठीक पहले आईएसआई को मुंबई हमले के पीछे बताया।

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

अब तक विदेशी थे नक्सली

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि नक्सलियों से निपटने के लिए समग्र तरीका अपनाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा है कि उनके विचार दूसरों से अलग हो सकते हैं लेकिन नक्सल तत्त्व समाज का हिस्सा हैं और उन्हें गुमराह किया गया है. नीतीश कुमार ने ये बयान दिल्ली में प्रधानमंत्री के साथ नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक से पहले दिया है. बैठक की शुरूआत में गृहमंत्री पी चिदंबरम ने चार नक्सल प्रभावित राज्यों के लिए एक साझा कमांड बनाने का सुझाव दिया और कहा कि एक सेवानिवृत मेजर जनरल को इसका सदस्य बनाया जाएगा. साथ ही सरकार ने इन राज्यों में माओवादियों के ख़िलाफ़ चल रहे अभियान के लिए हेलीकॉप्टर मुहैया कराने की बात की है. इस बैठक में झारखंड के राज्यपाल हिस्सा ले रहे हैं क्योंकि वहां इस समय राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है. इस बैठक के शुरु होने से पहले बुधवार को गृह मंत्री पी चिदंबरम ने दिल्ली में स्वीकार किया कि पिछले छह महीनों में नक्सलवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में केंद्र सरकार के सहयोग से राज्य सरकारों को मिली-जुली सफलता मिली है.


चिदंरबरम ने कहा कि अब केंद्र सरकार सुरक्षा बलों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने, सैन्य और अन्य सामान की आपूर्ति और बचाव कार्यों के लिए और हेलीकॉप्टर मुहैया करवाएगी. नक्सल प्रभाव वाले 400 पुलिस थानों को मज़बूत करने के लिए दो करोड़ रुपए प्रति पुलिस स्टेशन ख़र्च किए जाएंगे. इस धन का 80 फ़ीसदी हिस्सा केंद्र सरकार देगी और 20 फ़ीसदी हिस्सा राज्यों को वहन करना होगा.ये व्यवस्था दो साल के लिए होगी.



एकीकृत कमांड



गृहमंत्री ने छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की सरकारों से नक्सलियों के ख़िलाफ़ अभियान में एक ‘एकीकृत कमांड’ के गठन का भी निवेदन किया है.

चिदंबरम ने इन राज्यों से सेना के एक सेवानिवृत मेजर जनरल को इस एकीकृत कमांड का सदस्य बनाने की भी गुज़ारिश की है. गृह मंत्री ने इन सभी चार राज्यों को नक्सलियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन के लिए एक आईजी की नियुक्ति करने को भी कहा है. ये अधिकारी केंद्रीय बलों के साथ समन्वय बनाए रखने के लिए भी ज़िम्मेदार होगा. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास के कार्यक्रमों को दुरुस्त करने के लिए एक समूह के गठन का भी सुझाव दिया गया है.इस समूह की अध्यक्षता योजना आयोग के मेंबर-सेक्रेट्री करेंगे. नक्सल प्रभावित 34 ज़िलों में सड़कों के सुधार के लिए भी क़दम उठाए जाएंगे. इसके तहत सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय 950 करोड़ रुपए की लागत से इन ज़िलों में कई सड़कों और पुलों का निर्माण करेगा. योजना आयोग के अलावा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़क निर्माण, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और पीने के पानी की व्यवस्था के लिए एक ‘विशेष विकास योजना’ की भी बात कही गई है.



सरकार ने कसी कमर

•नक्सलियों के ख़िलाफ़ अभियान में और हेलीकॉप्टर मुहैया करवाए जाएंगे

•एक साझा कमान का गठन जिसमें सेना के एक पूर्व मेजर जनरल सदस्य होंगे

•सड़क और पुल निर्माण के लिए 950 करोड़ रुपए

•नक्सल प्रभावितों क्षेत्रों के 400 पुलिस थानों के लिए दो करोड़ प्रति थाना धन का आबंटन किया जाएगा

•सड़क निर्माण, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और पीने के पानी की व्यवस्था के लिए विशेष विकास योजना

नक्सल तत्व समाज का ही हिस्सा है : नीतीश

नक्सल तत्व समाज का ही हिस्सा है : नीतीश

बुधवार, 14 जुलाई 2010

महंगाई पर सरकार कितनी विफल

आइये नज़र डालते हैं  दालों के भाव पर
दालें 1 जून 15 जून 11 जुलाई
तुअर 55-56 67-69 80-82
मूंग-मोगर 51-52 55-56 59-60
मसूर 46-48 54-56 56-60
उड़द 34 39 42
(थोक भाव, खुदरा भाव कुछ ज्यादा हो सकते हैं)
ये  सर्वविदित ही के महंगाई के मुद्दे पे सरकार कितनी विफल रही है ऊपर से मानसून का बेरुखापण एक गरीब किसान को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रहा है डालो से लेकर कापी किताबो पे और पेट्रोल से लेकर इलेक्ट्रोनिक्स के सामान के भी दाम बाद गये है 6 फरवरी को समाप्त सप्ताह में खाद्य पदार्थों की महंगाई दर 17.97 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसके पहले सप्ताह में महंगाई दर 17.94 प्रतिशत पर थी। पिछले वर्ष इसी सप्ताह के दाम से तुलना करने पर दालें 38.04 प्रतिशत, आलू के दाम 38.02 प्रतिशत और सब्जियों के दाम करीब 20 प्रतिशत बढ़ गए हैं।विशेषज्ञों ने इस साल महंगाई दर 10 प्रतिशत तक पहुंचने की आशंका व्यक्त की है। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने पर महंगाई और तेजी से बढ सकती है। कृषि एवं खाद्य मंत्री शरद पवार ने बुधवार को कहा था कि खाद्य पदार्थों की महंगाई में मार्च के बाद सुधार आ जाएगा लेकिन अब मध्य जुलाई तक सरकार की तरफ से महगाई कम होने की कोई सुचना नहीं है
 और चलते चलते 

कोई लुभाए धर्म तो कोई रिझाए जात,
कोई करता न दिखे महंगाई की बात ।
महंगाई की बात गई जो रोटी छीनी ,
चौंसठ में है दाल और चौबिस में चीनी ।
कुकिंग गैस पर पीएम की पत्नी भी रोई,
फिर भी इस मुद्दे पर चर्चा करे न कोई

सोमवार, 12 जुलाई 2010

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

Naxalite ka itihaas

1967 के दौर में नक्सलबाड़ी से जो चिंगारी उठी, उसने भारत को अपनी आगोश में ले लिया. आज हालात ऐसे हैं कि बंगाल कि यह चिंगारी आंध्रप्रदेश के गांवों तक पहुंच चुकी है. लेकिन सत्ता की मंशा कभी इसे सुलझाने की नहीं रही. देश में जब जनता पार्टी की सरकार थी तब उसी दौर में पिपरा, पारस बीघा, मसौढ़ी अरवल, कंसारा से लेकर बेलछी जैसे दर्जनों कांड हुए जिसमें दलित और कमज़ोर लोगों की सामूहिक हत्याएं की गईं. जब बेलछी कांड हुआ तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हाथी पर चढ़कर बेलछी पहुंची थीं. आज भी ऐसे हालातों में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं आया है, कत्लेआम होती रहती हैं, नेता मुआवजा की घोषणा करते रहते हैं, मानों ये कह रहे हों कि बस यही लाख- दो लाख आपके जान की क़ीमत है. नक्सलवाद की समस्या को टटोलें तो कभी आंध्र, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तो कभी बिहार झारखंड में यह हमेशा अपना सर उठाता रहा है. सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए शुरू हुआ यह आंदोलन आज जिस मुकाम तक पहुंच चुका है, उससे यह कतई नहीं माना जा सकता कि यह वही नक्सलवादी आंदोलन है, जो बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ था. जिसकी अगुवाई चारू मजूमदार और कानू संन्याल जैसे नेताओं ने की. एक वक़्त ऐसा था जब देश का पूरा अल्पसंख्यक बुद्धिजीवी वर्ग भी इस आंदोलन के पक्ष में खड़ा दिखाई देता था. ग़रीब-गुर्बा से लेकर समाज में हाशिए पर जीने को मजबूर लोगों का हमेशा से इसे जन समर्थन मिलता रहा. यहां तक कि सरकार के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ने वाले नक्सलियों के कुछ समर्थक तो सरकार में भी थे. लेकिन, आज नक्सलवाद की वही स्थिति जानना है तो आप उन लोगों के बीच जाइए, जो हररोज़ इनके संगीनों का शिकार हो रहे हैं. उस मां से पूछिए जो अपने बेटे का चिता सामने देखती है, उस पिता से पूछिए जो अपने बेटे को ही अपना कंधा दे रहे हैं. हाल में, नक्सलियों के हाथों मारे गए पुलिस अधिकारी फ्रांसिस के बेटे से पूछिए. इस तरह जवाब तलाशने के लिए आपको कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. ऐसे अनगिणत उदाहरण हैं जो नक्सलवाद के बदलते स्वरूप की तस्वीर आपकी आंखों के सामने घूमने लगेंगे.
हालांकि, एक बात तो तय है कि सरकारी नीति-निर्धारक तय नहीं कर पा रहे हैं, इस हालात के लिए कौन सी स्थितियां ज़िम्मेदार हैं. नक्सलवाद को लेकर सरकारें जिस तरह से अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती रही हैं, इसे समझना कतई मुश्किल नहीं है. आज देश के सात से भी अधिक राज्यों में नक्सली अपना क़हर बरपा रहे हैं. देश के क़रीब दर्जन भर राज्यों में इन माओवादियों ने सत्ता को खुलेआम चुनौती दे रखी है. चाहे वह छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, ओडीसा, बिहार, बंगाल उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश जैसे राज्य ही क्यों न हों. कुछ इलाक़ों या कहें कि कुछ राज्यों में में तो इनकी समानांतर सरकारें भी चल रही हैं तो कतई ग़लत न होगा. क्या यह बुरा होगा कि नक्सलवाद का मसला सुलझा लिया जाए. यह मसला सुलझ भी सकता है, लेकिन इससे नक्सलवाद पर चलने वाली कुछ लोगों की दुकानें बंद हो जाएंगीं. ये कौन लोग हैं. कौन हैं, जो हर समस्या को उसके उसी रूप बरकरार रखना चाहते हैं. आख़िर, ये क्यों चाहते हैं कि समाज के हाशिए पर और विकास के नाम जो लोग पिछड़ गए हैं, उनके अधिकारों के लिए लड़ने वाले उनका ही ख़ून बहाए. जब तक इस सवाल को हम नहीं समझ लेते तब तक किसी भी समस्या की तरह नक्सलवाद को भी नहीं सुलझा सकते. चाहे सरकार कोई नीति बनाए, नक्सलवाद से लड़ने के नाम पर सलवा जुड़ूम बनाए गए, लेकिन पिसता तो वही आम आदमी है. जिसकी आवाज़ देश के हुक्मरानों तक नहीं पहुंचती.

Hamari Haar YA Unki Jeet

केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा राज्य सरकारों को केंदीय अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की नए सिरे से समीक्षा के लिए कहे
जाने के एक दिन बाद शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के डीजीपी ने सीआरपीएफ पर आरोप लगाया कि वे नक्सलियों का आसान टारगेट बन रहे हैं। राज्य पुलिस के प्रमुख ने कहा है कि हम सीआरपीएफ जवानों को यह नहीं सिखा सकते कि वे कैसे चलें।
डीजीपी विश्व रंजन ने कहा, जिम्मेदारी का क्या अर्थ होता है? इसका अर्थ है कि हम केंद्रीय बलों को जो सुविधाएं दे सकते हैं, वे हम उन्हें देते हैं। जिम्मेदारी का अर्थ है कि हम मिलजुल कर तैनाती करते हैं। लेकिन जिम्मेदारी का यह अर्थ नहीं है कि हम उन्हें यह सिखाएं कि वे उन्हें कैसे चलना है। हम इस सवाल का जवाब नहीं दे सकते कि सीआरपीएफ पर लगातार घात लगातार हमले क्यों हो रहे हैं।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में नक्सलियों के ताजा हमले में सीआरपीएफ के 27 जवानों की मौत के बाद केंदीय गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में केंदीय अर्द्धसैनिक बलों की नए सिरे से तैनाती और उन्हें मजबूत करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है।

नक्सलियों के तीन कमांडर मारे गए थे : माओवादियों ने स्वीकार किया है कि छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में सीआरपीएफ पर हमले के दौरान नक्सलियों को भी नुकसान उठाना पड़ा है और सीआरपीएफ की जवाबी गोलीबारी में उनके तीन कमांडर मारे गए हैं। सीपीआई (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमिटी द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि मारे गए नक्सलियों में प्लाटून कमांडर बंदू व शंकर और सेक्शन कमांडर रमेश शामिल हैं। गौरतलब है कि पुलिस ने गुरुवार को दावा किया था कि नारायणपुर हमले के दौरान सीआरपीएफ की जवाबी कार्रवाई में 15 नक्सली मारे गए थे, जिनके शवों को उनके साथी उठा ले गए थे। नक्सलियों की 'बहादुरी' का गुणगान करते हुए रिलीज में कहा गया है कि नक्सलियों ने न केवल 27 जवानों को मारा, बल्कि उन्होंने आठ एके-47 राइफलें और इतनी ही तादाद में इंसास राइफलें, तीन एसएलआर, दो मोर्टार और दो एलएमजी लूटने में भी कामयाबी पाई है।

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