गुरुवार, 26 अगस्त 2010

झोलाछाप बनाम मुर्दाछाप

रोज़ अखबारों में झोलाछाप डॉक्टरो की खबरे पड़ने को मिलती है के सरकार झोलाछाप डॉक्टरो पे नकेल कास रही है लेकिन क्या कभी ये जानने की कोशिश की है के आखिर झोलाछाप डॉक्टर के फायेदे है या नुक्सान.....

 कुछ दिन पहले सरकारी अस्पताल जाना हुआ !
परचा कटाकर लाइन में लग गया ! वो लाइन थी या मालगाड़ी के डब्बे जो ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे !वहा पहुचकर मैंने महसूस किया के वास्तव में देश की जनसँख्या बढ रही है और जनता का हाल देखकर आसानी से भारत विकास और भुखमरी में फर्क बताया जा सकता है!

जुलाई की तपती गर्मी में लाइन में लगे लगे काफी औरतें और बुज़ुर्ग लाइन छोडकर बैठने  पर   मजबूर हो गये
खेर अभी लाइन में लगे 1 घंटा  ही हुआ था .........

की अस्पताल के गेट  पर एक महिला गिरी और दर्द से तड़पने लगी और लोगो  की तरह मैं  भी मूक दर्शक बना देखता रहा यही नहीं  wardboy , nurse , doctor अपनी ' गर्दन ऊची '  किये निकलते  रहे जब  काफी  देर तक  नाटक नौटंकी  देखने वाली हम जनता को एहसास हो गया की ये कोई star plus  का डेली सोप  नहीं  वास्तविकता है तो  कुछ साहसी पुरुषो ने आपस में विचार विमर्श कर  डॉक्टर से कहने का निश्चय किया लेकिन कोई भी  पहले जाना नहीं चाहता था ( शायद  जगह छीन  जाने के दर से )

 डॉक्टर से कहा गया  लेकिन उस महिला  की किस्मत अच्छी नहीं थी  तब तक लंच गया था और डॉक्टर को  उसके दर्द से ज्यादा  अपने पेट  में भूख  के दर्द की चिंता थी लेकिन फ़िर भी उसने सहानभूति जताते हुए wardboy  को आवाज़ ज़रूर लगे जैसे तैसे उसने महिला का डॉक्टरी मुआइना किया महिला से तेज़ आवाज़ में पूछा

" क्यों क्या हुआ...... !!!

दो तीन बार पूछने पर महिला ने हलकी सी आंख खोलकर फिर से बंद कर ली

 चूँकि लंच ब्रेक के बाद मेरा  नम्बर था इसलये में आकर लाइन में लग गया तब तक वो महिला तड़प तड़प कर शायद थक चुकी थी

 मगर था इसीलिए में आकर  लाइन में लग गया तब तक वो महिला तड़प तड़प कर शायद थक चुकी थी और उसके बाद डॉक्टर साहब का भाषण के " अकेले आ जाते है लोग " दवाई टाइम से नहीं कहते "
वगेरा वगेरा
अपना eye  test  कराकर आ गया हालकी ये घटना मेरे सामने घटित हुई थी लेकिन अपनी बाइक पे सवार होते ही में सब भूल गया .....
मुझे मेरी अंतरात्मा ने तब झिंझोरा जब अगले दिन मेने उसी महिला का उसी स्थान पे समाचार पात्र में फोटो देखा
जिसका शीर्षक था
" अस्पताल गेट पर अज्ञात महिला की तड़पकर मिर्त्यु "

ये घटना मेरे मन पर कई सवाल छोड़ गयी
ये पहली घटना नही थी इसीलिए शायद दुसरे दिन अखबार में कोई ज़िक्र नही था
 और यही हाल लगभग सभी सरकारी अस्पतालों का है
क्या उस महिला की जान बचायी जा सकती थी अगर डॉक्टर साहब खुद आकर  भी उसे देखते तो भी उसके बाद इतनी फ़ोर्मल्तिएस  होती के तब तक उसे मर ही जाना था ऑपरेशन की तो बात ही नहीं करते है

..................
दो तरह
 के लोग होते है अमीर लोग और गरीब  लोग !
अमीरों के लिए प्राइवेट नुर्सिंग होम और गरीबो के लिए सरकारी हस्पताल इनके बीच में एक और श्रेरी  आती है जहाँ गरीब और माध्यम वर्गीय इलाज करवाते है जिन्हें झोलाछाप कहते है ये बड़ा इलाज तो नहीं कर पते लेकिन छोटा इलाज बखूबी कर लेते है गरीबो को शायद बड़ी बीमारी होती भी नहीं है
झोलाछाप डॉक्टर वो होते है जिनके पास अनुभव तो बहुत होता है लेकिन डिग्री की कमी  की वजेह से झोलाछाप कहलाते है !
 एक आदमी जो महीने में लगभग 6 -8 हज़ार Rs कमाता है अगर वो 2 -3 हज़ार रूपए नुर्सिंग होम की दावा दारू में खर्च कर देगा तो बचेगा क्या कैसे वो घर चलेगा और कैसे बच्चो का भविष्य सुधरेगा इन लोगो को अगर वही दवाई झोलाछाप डॉक्टर के द्वारा 15 -20 रुपए में मिल जाती है तो इसमें बुरे क्या है कहते है की झोलाछाप जो दवाई देते  है वो नकली  होती है तो अगर ऐसा है तो नकली दवाई देने पर रोक लगनी चाहए या बनाने पर .........

बहुत कम केस ऐसे होते है जो की झोलाछाप द्वारा बिगड़ते है वरना नुर्सिंग होम में केस बिगड़ते ही रेफर कर दिया जाता है और सरकारी हस्पताल में तो इलाज के अभाव में ही मरीज़ मर जाता है
दूसरा अगर हम देखते है बड़े डॉक्टर की घर पर आने की फीस काफी अधिक होती है और सरकारी तो आ ही नहीं सकते लेकिन झोलाछाप  डॉक्टर घर बैठे इलाज कर जाते है .....
मित्रो ये मेरा अनुभव था आपको कैसा लगा किर्पया बताये निचे कमेंट्स पे क्लिक करे या मुझे इ-मेल कर सकते है
malik.monis@gmail.com


मोनिस मालिक 

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

मरता किसान सड़ता अनाज


भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह एक ऐसा देश है जो दुनिया में दूसरा स्थान रखता है कृषि उत्पादन के क्षेत्र में. भारत की लगभग ५२ से ५५ % जनसँख्या कृषि कार्य से अपनी जीविका चलाती है. यह एक ऐसा देश है जिसके कृषि उत्पादको की पहुच दुनिया के लगभग हर कोने में है. भारत के कृषि उत्पाद दुनिया में कितना असर डालते है वह इस बात से ही पता चलता है की, लगभग २ साल पहले ही दुनिया के सबसे ताकतवर और प्रभावशाली देश “अमेरिका” के तत्कालीन राष्ट्रपति “जार्ज बुश”ने कहा था की दुनिया में अनाज की किल्लत इसलिए हो रही है क्योंकि भारत में मध्यम वर्ग अभी अधिक संपन हो गया है. उनकी चिंता का मूल कारण यह नहीं था की भारत की जनता अधिक संपन हो कर अपने खाने पर जायदा व्यय करने लगी है, बल्कि उनकी चिंता का कारण यह था की इस वजह से भारत अभी पहले से कम अनाज दुनिया को निर्यात करता है.


वह देश, जो दुनिया के बड़े-बड़े देशो को रोटी मुहैया कराने में मद्दद करता है, उसी देश के कई इलाको में आदमी भूख से मरता है. यही इस देश का स्याह पहलू भी है कि, विश्व में दूसरी सबसे तेजी बढती अर्थव्वस्था होने के बावजूद, देश अपने ही लोगो को दो वक्त की रोटी नहीं दे पा रहा है. वैसे तो हमको सारे देश में ऐसे लोग मिल जायेगे जो दो वक्त की रोटी के लिए, एक मौसम में तो अपने खून को पसीना बनाकर जलाते है तो दूसरे मौसम इसी रोटी के लिए अपना खून जमाते है. वैसे तो अपने हिस्से की रोटी के लिए सबको मेहनत करनी पड़ती है लेकिन सिर्फ जिन्दा रहने के लिए इतनी मशक्त कही न कही “Incredible India” के लिए एक सवाल छोड़ जाती है.


यहाँ एक तरफ तो ऐसे लोगो की भरमार है जिनको सिर्फ जिन्दा रहने के लिए कुछ भी करना पड़ता है लेकिन दूसरी तरफ सरकारी और गैर सरकारी गोदामों में अनाज सड़ता रहता है. हर साल देश में हजारो टन अनाज सड़ता जाता है और गरीब लोगो तक नहीं पहुच पाता है. झारखण्ड, उडीसा, छतीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तरप्रदेश में न जाने कितने ही जिले भुखमरी की मार झेल रहे है. हाल ही में हापुर का नज़ारा हम सबने देख ही लिया है  यहाँ कई इलाको में लोग रोटी के लिए ही एक दुसरे का खून बहाने को भी तैयार है. चुकी इन क्षेत्रो में इन्सान की पहली जरूरत, “रोटी” का ही इंतजाम नहीं हो पाता है, यहाँ किसी और तरह के विकास की बात करना बेईमानी ही होगी.


वैसे तो सरकार ने कुछ अरसा पहले देश में खाद्य सुरक्षा कानून पास किया था, लेकिन किसी भी और सरकारी नीति की तरह इस कानून का भी कोई बहुत अच्छा हाल नहीं है. सब को पाता है, कही-कही अनाज के गोदाम तो खाली हो जाते है लेकिन वो अनाज गरीबो तक न पहुच कर सरकारी बाबुओ, अधिकारियो और नेताओ के घर के “AC”, “LCD TV” या “Flat” बन जाते है. इन भ्रष्ट लोगो के खिलाफ कानून भी कुछ ऐसे चलता है कि भूखे लोगो की एक पीढ़ी ख़तम होने के बाद दूसरी पीढ़ी जिन्दगी से लड़ने के लिए तैयार हो जाती है लेकिन कानून दोषी लोगो को सजा नहीं दे पाता है.


कुछ इमानदार नेताओ ने इस तरफ अच्छी पहल भी करी है जैसे छतीसगढ़ में वहां के मुख्यमंत्री Dr. रमन सिंह जी ने. इन्होने गरीबो को कम से कम कीमत पर अनाज मुहैया करना शुरू किया है. उनकी इस पहल का कई और राज्यों ने स्वागत किया है और दुसरे राज्यों में भी इस तरह की योजनाये शुरू की गई है.अभी यह देखना बाकी है कि बाकी राज्यों में यह कितना सफल होता है. सरकारों और उनके नुमानिन्दो को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश का अनाज सड़ने या चूहों का निवाला बनने के बजाये देश की गरीब से गरीब लोगो तक पहुचे.

सोमवार, 16 अगस्त 2010

कितने आज़ाद है हम..............!!!

आप सभी मित्रों को आज़ादी कि ६४ वर्षगाठ कि सुभकामनायें......!!!
    मित्रों एक बार आज़ादी आई और मेरे जेहन में कईं सवालात छोड़ गई.....कितने आज़ाद है हम ..??  क्या वाकई में आज़ाद है हम..??
 कल घर से ज्यूँ ही बाहर निकला चंद कदम चलने के बाद सड़क पै पहुचा तो ... तो एक लगभग १०-१२ साल का लड़का मिला .तन पै एक फटा सा कपडा...हाथ पै तिरंगा लिए....बोल रहा था "साहब ले लो .ले लो न साहब..." देख कर सोचने को मजबूर हो गया कि क्या वाकई में हमें आज़ाद हुए ६४ वर्ष हो गये है..?? क्या ये बच्चा भी आज़ाद है...?? ये तो हालत है देश कि राजधानी के...ज़रा गौं-देहात में जाके देखिये..जानिए कितने आज़ाद है.....??

    हम..जहा देश कि राजधानी में रहते है ..जहा पुलिस अपने आप को किसी भी हालत से निपटने के लिए त्यार बताती है....क्या वाकई में तयार हें हम..?? कितने त्यार है हम..?? उसी सहर का मंज़र देखिये एक लड़की शाम को घर से अकेले नहीं निकल सकती......क्यूँकि उससे तो दिनदहाड़े सडक पै देश कि नवजवान जनता.के छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है.... जिसको सामने खड़ा हवलदार भी चटकारे ले ले के देखता है...जी चाहता है ने लोगों का मुह तोड़ दूँ...जो खुद को अपनी हिम्मत और मर्दानगी को एक लड़की को छेड़ने में परेसान करने में या उसकी इज्ज़त सरे राह उतारने में समझते है... लेकिन नहीं कर सकते....

    .गली मुहल्लों में १४ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को पेट के ख़ातिर काम करते हुए देखा जा सकता है....क्या हमारी सरकार ये नहीं जानती है ...या उसके नुमाइंदे...कानून बनाने मात्र से तो नहीं हो जाता है न.........जरुरत है उन्हें लागू करने कि ...उसमे अमल करने कि...क्या इनकी जगहा सड़क पै या होटल और रेस्टोरेंट पै झूटे बर्तन उठाने कि है या ...पढाई के लिए स्कूल भेजने कि .......क्या इनको शिक्षा का अधिकार नहीं है.?? इनसे पूछ के देखिये इनकी आज़ादी किसमे है...
  
   सड़क पै भीख मांगती ५० साल कि महिला .क्या ये आज़ाद है..? फ्लाय-ओवर के ऊपर AC कार में निकलने वालो कभी नीचे झांक के देखो......कोई महिला अपने बच्चे न पसीना अपने फट कर चीथड़े हुए आँचल से पोछती नज़र आएगी....आप देश कि सफाई कि बात करते हैं.....जिस इंसान के पास तन ढकने को मात्र एक जोड़ा कपडा हो उससे धुले हुए कपड़ो कि बात केसे कर सकते है...कभी सोचा है आपने...देश आ इनते बर्गों में बट क्यूँ रहा है ..अमीर और अमीर हो रहा हर तो गरीब और गरीब...लेकिन महंगाई तो कभी गरीबी को देख के नहीं हो रही है न...इन देश चलाने वाले चंद नेताओं और पुजिपतिओं को क्या मालुम कि देश में टमाटर और पयांज के भाव क्या है....!! गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए सरकार योजना तो बतानी है.......उन्हें अनाज मुहया कराती है..........लेकिन क्या वाकई वो अनाज उन तक पहुँच पता है ........या गोदाम में सड़ रहा होता है....!!!


     सबसे तजा उदहारण CWG गेम्स...ज़हा हम एक तरफ ये दुनिया में ये धिंडोरा पिटते है कि सोने का देश है हमारा.......वही गेम्स कि त्यारिओं और उनसे जुड़े घोटालों के बारे में सुन के दिल दहल जाता है...सवाल जेहन में आता है क्या वाकई में हमारा देश सोने का है...?? क्या हम गेम्स करवाने के लिए असफल है.....हम इतने सालों से गेम्स कि तयारिया नहीं कर पाए.वही चीन और जापान जेसे देश इतना आमदा रखते है कि वो अब भी इस गेम कि जिम्मेदारी लेने को तैयार हें ....!!!   देश का राष्टीय खेल हाकी आज......बदनामी का दंश झेल रहा है....!!!

कश्मीर के आये दिन दंगों के नाम पै पुलिस बरबस जनता पै गोलिया चलाती है......लेकिन जब मुंबई और देल्ही दंगे हो तो सिर्फ लाठी चार्ज होता है क्यूँ ..?? क्या हर कश्मीरी आतंक वादी है..?? कश्मीर के लोगों को जीने का हक नहीं है क्या...??....क्या वो आज़ाद नहीं है...???.......क्या आज़ादी का यही सही मायने है.....??.क्या ऐसी को आज़ादी कहते हो तुम ???.........शर्म सी आती है ये कहते हुए कि कहने को तो हम आज़ाद है लेकिन सही मायने में आज़ाद इस देश के चंद पूजीपति और नेता लोग ही आज़ाद है ...........आज़ादी का सही मतलब तब है..............जब १४ साल का बच्चा काम पै न जाके पढने के लिए जाये...........जब ६४ साल कि बुडिया अपने बच्चों के पेट भरने के लिए रोड़ पै भीख मांगती नज़र न आये...सम्मान रक्षा के लिए नव युवक-युवतियो कि जान न ली जाए.....सबको प्यार करने का हक हो...इजहार करने का हक है......!!! खुद से सवाल कर के देखों ..कितने आज़ाद हो तुम ...........??


सही मायने में हम तब आज़ाद है जब हमें खुद से कोई भय न हो...जब भावनाओं कि आज़ादी हो...नेतिक मूल्यों कि आज़ादी हो..!!! भाषा कि आज़ादी हो ..!! जाती-धर्म कि आज़ादी हो...सोच कि आज़ादी हो.....हक कि आज़ादी हो...!!!.


बिदेशियो कि हुकुमत से हम जरुर ६४ वर्ष पहले आज़ाद हो गये हो ..लेकिन देश के अन्दर छुपे चंद माफिये और इस देश के सोदागर से कब आज़ाद होंगे हम जो इस सोने कि चिड़िया को बेचने को आमदा है...उनको कोंन पहचानेगा......उनसे इस देश को कोंन बचाएगा...?? उनसे कोंन आज़ाद करवाएगा ..??

सही मायने में आज़ादी तब है तब है जब......सच में सबको एक नज़र से देखों...............क्यूँकि इस देस का हर इन्सान आज़ाद है.,.......नहीं तो झंडा फहराने से कुछ नहीं होगा............देश ६४ साल बाद वही है....तब हम गुलाम थे और आज़ादी के लिए लड़ रहे थे...और आज आज़ाद हैं और फिर भी आज़ादी के लिए लड़ रहे है...!!!






आज़ादी का जश्न मनाइए और मेरे चंद सवालातों को कभी सोचियेगा..........शायद कुछ सच लगे.....!!!






शुभकामनाओं सहित
     मनीष मेहता
http://musafirhunyaro.blogspot.com/



( चित्र- गूगल से )