वो कौन थी कहाँ से थी क्या नाम था उसका हम नहीं जानते, हम उससे दामिनी के नाम से जानते है, वो 23 वर्ष की मेडिकल की होनहार छात्रा थी, उसके उप्पर परिवार के सपने थे, उसके माता-पिता ने उससे अपने खेत बेच के भी इक होनहार डाँक्टर बनाने के सपने देखे थे, वो दामिनी भेंट चढ़ गई आज इस पुरुष प्रधान समाज में घूम रहे दरिंदो की, हमारे इस लचर तन्त्र की, हमारे भ्रष्ट और गैर जिम्मेदार सरकारी हिमाकतों की ! हाँ दामिनी की रूह ने इस दिल्ली की जमीं पे मरना भी गवारा नहीं समझा, शायद इसलिए इस दिल्ली ने उसकी ये हालत की उसकों इस हाल में पहुचाया, दामिनी की मौत हमारे अन्दर के इंसानियत की मौत है, भारतीय संस्कृति व सभ्यता जिसका हम वर्षों से गुणगान करते आ रहे है उसकी मौत है ! दुनिया भर में आज हम हमारे यहाँ हुए इस घ्रणित कृत से चर्चा में है ! मुझे इस पुरुष मानसिकता वाले समाज में एक पुरुष होने के नाते शर्म आती है ! हम सब इस मौत के जिम्मेदार है, हमने अपने समाज को इस मोड़ पे लाके खड़ा कर दिया ! जहां देवी का रूप समझने वाली नारी को महज भोग की वस्तु बना के रख दिया, अभी भी जाग गए तो जाने कितनी बहने, माँ, बेटियां दामिनी बनने से बच सकती है ! झांकिए अपने अन्दर, महज कुछ दिन के घड़ियाली आँसूं बहाने की फितरत बदलनी होगी ! हमारे अन्दर असंवेदनशीलता की जो जंग लग चूका है उसको साफ़ कीजिये, उसकी परत को हटा के देखिये, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी कह के जश्न मानाने वालो देखो हालत बदलते नज़र आयेंगे ! जागो और हलार्तों से लड़ना होगा, अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन सही से करना होगा, सरकारी व सरकारी तन्त्र के पहरेदारों जाग जाओ, आज तक तुमने अपनी मर्जी से जो किया उसकी भरपाई करने का समय आ गया, अब ये जिसको आप आज तक भीड़ समझते आये है वो भीड़ जाग गई है, जाने कब इस भीड़ से कोई भगत सिंह पैदा हो जाए, ये क्रांति शुरू हो गई है अब ये रुकने वाली है, युवा शक्ति आगे आ चुकी है, जाग जाओ अभी भी बरना जागने लायक सूरत नहीं बचेगी ! दामिनी की मौत ने हमारे भ्रष्ट तंत्र, स्वार्थी नेताओ, नपुंसक राजनीति, के सारे पोल खोल दिए ! कब तक दुनिया में अपनी झूटी शान दिखाते रहोगे, पहले घर की माँ, बहन, बेटियों की हिफाजत का जतन तो करो, सीमा की सुरक्षा हो जायेगी ! घर में पैदा हो रहे इन दुश्मनों पे अंकुस तो लगाओ !
जागो अब जागो नहीं तो जागने की सूरत न रहेगी ! बंद करो ये घड़ियाली आँसू गर दामिनी को सच्ची श्रधांजली देनी है तो ये प्रण लेना होगा हमारी कोई बहन दामिनी न बनने पाए, आस पास हो रहे हर छोटे-बड़ी घटनाओं पे आंख बन करना छोडिये, अपनी संवेदनशीलता दिखाइये ज़िंदा हो तो जिन्दा बनिए ! संहार कीजिये इन दरिंदो का, समाज को सुधारने के लिए पहल कीजिये, शुरुवात घर से कीजिये, वक़्त लगेगा लेकिन बदलाव आएगा, और ये तभी संभव है जब हर इक इन्सान जागेगा !
दामिनी तुम मेरे लिए उस चिंगारी की तरह थी जो खुद के सोने से पहले हमें, हमारे सरकार, हमारे तंत्र को जगा गई ! नमन ! तुमने ये रूह अवश्य छोड़ी है लेकिन तुम हमारे दिलो में जिन्दा रहोगी, इसलिए भी की तुमने देश की लाखो-करोडो महिलाओं को जगा दिया उन्हें एहसास दिया कि रानी लक्ष्मीबाई जेसी बिरांगना भी हमारे बीच में पैदा हुई थी !
मेरे मृत समाज, लचर तन्त्र, असंवेदनशील सरकारी पहरेदार, नपुंसक राजनीति व राजनेताओ की मौत पे श्रधांजलि !
(नोट - मेरे शब्दों से किसी को तकलीफ या किसी भी ब्यक्ति बिशेष की भावनाओं को ठेस पहुचने का कतई इरादा नहीं है, हालातों और इस घटना ने झकझोर के रख दिया खुद को पुरुष समझने का गुरुर आज मर गया और जाते जाते ये सब कुछ बयां कर गया ! )
*मनीष मेहता !