शनिवार, 29 दिसंबर 2012

इक थी दामिनी !



वो कौन थी कहाँ से थी क्या नाम था उसका हम नहीं जानते, हम उससे दामिनी के नाम से जानते है, वो 23 वर्ष की मेडिकल की होनहार छात्रा थी, उसके उप्पर परिवार के सपने थे, उसके माता-पिता ने उससे अपने खेत बेच के भी इक होनहार डाँक्टर बनाने के सपने देखे थे, वो दामिनी भेंट चढ़ गई आज इस पुरुष प्रधान समाज में घूम रहे दरिंदो की, हमारे इस लचर तन्त्र की, हमारे भ्रष्ट और गैर जिम्मेदार सरकारी हिमाकतों की ! हाँ दामिनी की रूह ने इस दिल्ली की जमीं पे मरना भी गवारा नहीं समझा, शायद इसलिए इस दिल्ली ने उसकी ये हालत की उसकों इस हाल में पहुचाया,  दामिनी की  मौत हमारे अन्दर के इंसानियत की मौत है,  भारतीय संस्कृति व सभ्यता जिसका हम वर्षों से गुणगान करते आ रहे है उसकी मौत है ! दुनिया भर में आज हम हमारे यहाँ हुए इस घ्रणित कृत से चर्चा में है ! मुझे इस पुरुष मानसिकता वाले समाज में एक पुरुष होने के नाते शर्म आती है !  हम सब इस मौत के जिम्मेदार है, हमने अपने समाज को इस मोड़ पे लाके खड़ा कर दिया ! जहां देवी का रूप समझने वाली नारी को महज भोग की वस्तु बना के रख दिया,  अभी भी जाग गए तो जाने कितनी बहने, माँ, बेटियां दामिनी बनने से बच सकती है ! झांकिए अपने अन्दर, महज कुछ दिन के घड़ियाली आँसूं बहाने की फितरत बदलनी होगी ! हमारे अन्दर असंवेदनशीलता की जो जंग लग चूका है उसको साफ़ कीजिये, उसकी परत को हटा के देखिये, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी कह के जश्न मानाने वालो देखो हालत बदलते नज़र आयेंगे ! जागो और  हलार्तों से लड़ना होगा, अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन सही से करना होगा,  सरकारी व सरकारी तन्त्र के पहरेदारों जाग जाओ, आज तक तुमने अपनी मर्जी से जो किया उसकी भरपाई करने का समय आ गया, अब ये जिसको आप आज तक भीड़ समझते आये है वो भीड़ जाग गई है, जाने कब इस भीड़ से कोई भगत सिंह पैदा हो जाए, ये क्रांति शुरू हो गई है अब ये रुकने वाली है, युवा शक्ति आगे आ चुकी है,  जाग जाओ अभी भी बरना जागने लायक सूरत नहीं बचेगी ! दामिनी की मौत ने हमारे भ्रष्ट तंत्र, स्वार्थी नेताओ, नपुंसक राजनीति,   के सारे पोल खोल दिए ! कब तक दुनिया में अपनी झूटी शान दिखाते रहोगे,  पहले घर की माँ, बहन, बेटियों की हिफाजत का जतन तो करो, सीमा की सुरक्षा हो जायेगी ! घर में पैदा हो रहे इन दुश्मनों पे अंकुस तो लगाओ ! 


कुछ दिन के लिए सिर्फ महज दिखावे के लिए जागने से कुछ नहीं होगा ! काश इतनी सतर्कता हमारी सरकार व दिल्ली पुलिस पहले दिखाती !  गर यही हालत रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी वाली पीढ़ी इन नेताओं से, इस राजनीति से इस तंत्र से नफरत न करने लग जाये ! 
जागो अब जागो नहीं तो जागने की सूरत न रहेगी !  बंद करो ये घड़ियाली आँसू गर दामिनी को सच्ची श्रधांजली  देनी है तो  ये प्रण लेना होगा हमारी कोई बहन दामिनी न बनने पाए, आस पास हो रहे हर छोटे-बड़ी घटनाओं पे आंख बन करना छोडिये, अपनी संवेदनशीलता दिखाइये ज़िंदा हो तो जिन्दा बनिए ! संहार कीजिये इन दरिंदो का, समाज को सुधारने के लिए पहल कीजिये, शुरुवात घर से कीजिये, वक़्त लगेगा लेकिन बदलाव आएगा, और ये तभी संभव है जब हर इक इन्सान जागेगा !  
दामिनी तुम मेरे लिए उस चिंगारी की तरह थी जो खुद के सोने से पहले हमें, हमारे सरकार, हमारे तंत्र को जगा गई ! नमन !  तुमने ये रूह अवश्य छोड़ी है लेकिन तुम हमारे दिलो में जिन्दा रहोगी, इसलिए भी की तुमने देश की लाखो-करोडो महिलाओं को जगा दिया उन्हें एहसास दिया कि  रानी लक्ष्मीबाई जेसी बिरांगना भी हमारे बीच में पैदा हुई थी  ! 

मेरे मृत समाज,   लचर तन्त्र, असंवेदनशील सरकारी पहरेदार,  नपुंसक राजनीति व राजनेताओ की मौत पे श्रधांजलि !  

(नोट - मेरे शब्दों से किसी को तकलीफ या किसी भी ब्यक्ति बिशेष की भावनाओं को ठेस पहुचने का कतई इरादा नहीं है, हालातों और इस घटना ने झकझोर के रख दिया खुद को पुरुष समझने का गुरुर आज मर गया और जाते जाते ये सब कुछ बयां कर गया ! )

*मनीष मेहता !

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

आंखिर कब तक !

पिछले 2-3 दिनों से लगातार दिल्ली में हुए लड़की के साथ शाररिक शोषण की घटना के बाद प्रिंट मीडिया, सोसियल मिडिया, इलक्ट्रोनिक मीडिया आदि को बड़े गौर से देख रहा हूँ सुन  रहा हूँ और पढ़ रहा हूँ, कई नेताओं की प्रतिक्रियां भी सुनी ! खून खोलता है ये सुन और देख के कि इन सब घटनाओं पे हमारी सरकार, और तन्त्र कितना गंभीर है,  तकलीफ देने वाला वाकया है,  इन राजनेताओं की घटिया सोच यहाँ पे भी राजनीति करने से नहीं चुकती,  हम किस कानून की बात कर  रहे है, ये कौन सा क़ानून है,  अंग्रेजो द्वारा बनाया गया क़ानून जो भारतीयों को गुलाम  बनाये रखने के लिए बनाया गया था,  दिल्ली में रात को सड़कों पे 100 रूपये में बिकने वाला पुलिस  वाला कैसे किसी की हिफाज़त कर सकता है,  क्यूंकि वो तो अपने शिकार ढूढने में ब्यस्त है, लुटने दो किसी की इज्ज़त गर लुटती है ? उसकी रिश्तेतार थोड़ी न है वो ? जो पुलिस वाला 2 कदम हिल नहीं सकता,  आप देख लीजिये दिल्ली के इन अधिकतर पुलिस इन सिपाहियों को,  जिनसे अपने पेंट नहीं  संभलती है, तोंद फटने को हो रही है वो क्या लोगों की हिफाज़त करेगा !  लोगों को क़ानून का डर नहीं रहा गया ! क्यूंकि  हमारे इस भ्रष्ट तन्त्र व लचर क़ानून प्रणाली में मुजरिम को सज़ा मिलते मिलते सालों लग जाते है,  कभी इस लड़की के दर्द, तकलीफ को महसूस करके देखिये रोंगठे खड़े हो जायेंगे वो ना जी सकती है न मर सकती है,  हम और आप लोग  कुछ दिनों तक चीखेंगे, चिल्लायेंगे फिर खामोश !  ये तो दिल्ली का मामला है जो नज़र में आ गया इस  जाने कितनी घटनाए देश के हर राज्यों में होती है !   जब राजधानी सुरक्षित नहीं है तो बांकी जगह का क्या ! 

गर इस तरहा की घटनाओं को रोकना है तो हमारी क़ानून ब्यवस्था को मज़बूत करना होगा पुलिस तन्त्र में बदलाव करने होंगे ! पुलिस को भी इक आर्मी मैन की तरहा शाररिक, मानसिक तौर पे सक्षम बनाना होगा !  उनके अन्दर भी संवेदना लानी होगी ! 
इक घटना से सबक  लेना होगा,  सभी अपराधियों को जिन्होंने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया है कम से कम फ़ासी की सजा हो ! वो भी सरेआम चौराहे पे ! तांकि हर उस सक्श  के रौंगटे खड़े हो जाए जो लड़कियों, महिलाओं के साथ छेडछाड आदि करते हो !  ये करना होगा और सबक लेना होगा ! 
 आइये इक अच्छे  समाज की परिकल्पना में अपना योगदान दे !  अपने आस-पास होने वाली इन तरहा की किसी भी घटना का बिरोध करे, पुरजोर बिरोध करे,  क्यूंकि आज गर हम चुप रहेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब हम अपनी बहन, माँ  बेटी के साथ हुए अपराध पे आँसूं बहा रहे होंगे ! 

*मनीष मेहता ! 

(नोट - ये मेरी ब्यक्तिगत राय है बिरोधाभास संभव है !)